Friday, July 1, 2011

महगाई डायन से बचने के चंद रामबाण नुस्खे

आज हम जो नुस्खा बताने जा रहे है उसके लिए  कांग्रेसी बलागर और बलागिराओं से माफी. काहेकी तुलसी बाबा ने भे पहले ऐसों खुरापातियों की बंदना की ताकी उनका काम सुचारू ढंग से चल पाए . हां तो साहिबान मै महगाई से तुरत निदान की बात कर रहा हूँ. गर किसी को आपत्ति हो (हो तो ठेंगे से ) तो रत्ती भर पानी में चायपत्ती मिला कर बिना चीनी की चाय का पान कर ले सस्ते में चायपान से मूड ठीक हो जाएगा. तो मै मुद्दे पर आता हूँ.
१.मोटरसाइकिल की कीमत ४ लाख ,टाटा नैनो की कीमत 10 लाख और इसी अनुपात में गाडियों के दाम बढ़ा दिए जाय.
२. सिगरेट शराब गुटखा जैसे पदार्थों पर १००० गुना टैक्स आरोपित कर दिए जाय.
३.पेट्रोल की कीमते जब बढ़ती है तो उसका ४० परसेंट सरकारी खाते में जाता है वह ४० परसेंट रेडयूस कर दिया जाय.
४.संसद और विधानसभाओं की सुविधाओं में सहन सीमा तक कटौती की जाय.
५.मोबाइल सेट के दाम ५०० गुना किये जाय. 
६. सरकारी बीमार योजनाओं को तुरत बंद कर देना चाहिए. 
इनसे उत्पन्न आय तुरंत महगाई कमकरेगी. इसके साथ पर्यावरण और सामाजिक प्रदूषण भी कम होगा. 

झौवा  भर सुझाव के आगत के स्वागत में पलक पवाडे बिछाए...............सूर्यभान चौधरी 

Tuesday, June 21, 2011

बाबा रामदेव बनाम बाबा राहुल

कांग्रेस पार्टी ने आजकल बाबा  लोगों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. पर भैये इसे राहुल बाबा नहीं दिख रहे है. अरे भाई चौंके न राहुल जी तो अभी भी बाबा ही है न  ही ही ही. ४१ साला बाबा. बाबा वैसे पिता के पिता को कहते है. अपने दिग्गू भाई बोल दिए है की राहुल वह  युवा नेता है जिनमे पी एम् बन्ने के सारे लच्छन मौजूद है. सो बुढऊ मनमोहन जी की शायद मियाद पूरी होने को है. अब बाबा रामदेव की दाढी लाख काली हो पर वह  राहुल बाबा के रंगे पुते बालो के आगे थोड़ी ठहर सकते है. अब आप समझे के बाबा रामदेव क्यों दिल्ली से भगाए गए थे. अरे भाई पी एम् इन वेटिंग वाले बाबा को पी एम् को लपेटिंग वाले बाबा से डाह हो गया था. इस देश में एक ही बाबा होगा और वह होगा राहुल बाबा न की रामदेव बाबा. एक जंगल में दो ठू शेर थोड़े रह सकते है. अन्ना जी तो इसलिए बख्शे जा रहे है क्योंकि राहुल बाबा अभी अन्ना नही बने है मुला अन्ना  बन्ने की झक सवार होने वाली है. अन्ना हजारे को सावधान हो जाना चाहिए. एक साथ बाबा और अन्ना दोनों बनेगे अपने राहुल जी. फिर का होगा अरे होगा का ऊ जो है न वेरोनिक्वा अरे उही जो कोलंबिया वाली है सोनिया के बाद बनेगी गाडमदर . अब बालीवुड तेरा क्या होगा. खैर अभी तो मै सोच रहा हूँ की भारत तेरा क्या होगा.

Friday, May 27, 2011

आड़ में लिया जाने वाला मजा गाढा मजा होता है

मौज मजे के कई रूप रंग होते है जो जन साधारण के आनंद का विषय होते है. किन्तु आज पाठको के वास्ते गाढ़ा मजा पेश कर रहा हूँ मुलाहिजा फरमाइयेगा(न फर्मायेगे तो भी हमार का कर लेगे ही ही ही). ये गाढ़ा मजा तब उत्पन्न होता है जब कोई काम आप आड़ में करते हो. मसलन अभी लखनऊ में कुछ बड़े ब्लागरों ने एक शैक्षिक समारोह की आड़ में सम्मान वाला परोगराम करा कर गाढे मजे का आनंद प्राप्त किया था. सुरेश कलमाड़ी गेम की आड़ में गाढ़ा मजा काटे. किन्तु अब सारे कामनवेल्थ गेम से सम्बंधित भ्रस्टाचारी कलमाडी की आड़ में गाढा मजा ले रहे है. बलागिंग तो खैर आभासी आड़ है ही भी बलागर एंड बलागिरायें इसी आभासी आड़ में गाढे मजे को प्राप्त हो रहे है.रात तो इसीलिये बनी ही है की उसकी आड़ में दुनिया के सारे चोर उचक्के कुकर्मी लुच्चे गाढ़े मजे की और उन्मुख हो. जनता हित की आड़ में (कु)नेता लोग कैसे गाढा मजा ले रहे है यह तो सबको विदित ही है.
तो साधो भाइयो  मजे मौज की कथा अब आऊट डेटेड हो गयी है अब जमाना गाढे मजे का है.

Friday, May 20, 2011

भूलन ने चंचाली की मौज ले ली: अब पाठक न्याय करें

आज आप लोगों को एक सत्य घटना सुनाता हूँ . एक ठू रहे भूलन एक ठू रही चंचाली. दुन्नाऊ में गहरा प्रेम रहा. भूलन अच्छे अच्छों की मौज ले लेते थे. उनके मौज लेने में कोई बुरा भी नही मानता था. एक दिन चंचाली बड़े लाड में भूलन से बोली, सुनो चौधरी आज एक बात मन में आयी है. तुम सकी मौज लेते हो एक दिन मेरी भी मौज लो ना प्लीज़. भूलन मुसुकाते बोले धत घर में मौज नही ली जाती. बाहर ही ठीक. पर चंचाली ने त्रियाहठ पकड़ लिया. अंत में भूलन पतिधर्म निभाते हुए बोले, ठीक है ले लेंगे. चंचाली खुशी खुशी अपने काम में लग गयी.
इस बात को लगभग एक महीना बीत गया. भूलन कुछ बीमार से महसूस करने लगे. चंचाली ने जब पूछा तो बोले बैद्य जी को दिखाने गया था बोले शरीर में नमक जादा हो गया है. दो तीन दिन बाद भूलन खटिया पकड़ लिए. अब चंचाली चिंतित हो गयी. उसने अपने मायके से अपने भाई नन्हकू को बुला लिया. बड़े चिंतातुर होकर नन्हकू ने पूछा की जीजा क्या बात है, भूलन बोले क्या बताये रात में एक चुड़ैल आती है और मेरी पीठ चाटने लगती है. मेरे दात जम जाते है और बेहोशी छाने लगती है. तुम्हारी बहन से कह भी नही सकता. नन्ह्कुआ वीरोचित भाव लाते हुए बोला, जीएजा तनिको चिंता न करो आजै रात माँ ससुरी को पकड़ के न पटका तो तुम्हार साला नही.भूलन बोले ठीक. शाम को भूलन चंचाली से बोले जरा रात में मेरी पीठ चाट के बताना कि क्या वाकई नमक जादा हो गया का ? चंचाली बोली ठीक.
अब जब रात हुयी भूलन खटिया पे पड़ रहे. नन्हकू  एक झौवे में जलता दिया रख कर खटिया के पीछे छिप गया. रात में अल्प्वस्त्र धारण किये हुए चंचाली आयी और भूलन का चादर हटाकर जैसे ही पीठ चाटने लगी तड से नन्ह्कुआ कूदा और चंचाली को उठा कर पटक दिया मुश्कें कसते हुए भाति भाँती की गाली देते हुए बोला, ससुरी जीजा को परेशान करने आये थी. इतने में भूलन उठे और दिए पर से झौवा हटा दिया. प्रकाश में जैसे ही नन्हकू ने अपनी बहन को देखा बड़ी जोर से भूलन की अम्मा दईया करते हुए वहा से भगा. चंचाली भी भागी. कुछ दूर जाकर वे दोनों भूलन की सात पुश्तों को तारने वाली गाली देने लगे.
सुबह नन्हकू ने पंचायत बुलाई

अब मै सभी पाठको पर छोड़ता  हूँ कि वे निर्णय करे कि न्याय की क्या मांग है.




Wednesday, May 18, 2011

टरई न टारे मटरुआ चाहे भुईं गड़हा होई जाय.

बस्ती जिले में एक कहावत है की टरई न टारे मटरुआ चाहे भुईं गड़हा होई जाय. कहावते सार्वभौमिक होती है. चलिए इस कहावत का मतलब बता दें. माने कि हम जहा खड़े है वही खड़े रहेगे चाहे जमीन में गड्ढा क्यों न हो जाय. किसी के हटाये नही हटेगे. ब्लागिस्तान में गड़हा खुद रहा है और मटरू भाई कह रहे है कि गडहे में कूदी जैबे मुला एक बार में दस ठू पोस्ट लिखी से बाजू न आयेगे. ये मटरू भाई का ही कमाल है कि दिना भर कम्पूतरवा के चोंच से चोंच भिडाये रहते है कि कब टिप्पणी रूपी चारा दिखे और गड़प कर जाय. एक मटरू ने बाकायदा टिप्पणी का बगीचा तक उगा डाला है. ऐसे ही सभी लोग बगीचा उगाते रहे तो ब्लॉग दुनिया हरी भरी हो जायेगी और ग्लोबल वार्मिंग ख़तम.
अरे मटरूओं जो हियाँ स्क्रीनिया माँ दिन भर घुसे रहते हो उसका अध हिसा समय अपने आस पास कि समस्यायों को देखने और विचार करने में लगाओ तो बात बने. तुम लोग आब्सर्व तो करते हो पर सारा आब्जर्वेशन पोस्ट की टिप्पणी में घुस जाता है. सो जरा बलाग, फेसबुक ऑरकुट चिरकुट से बहार आओ. देखो कि कित्ता बड़ा गड्ढा खुद गया है इस समाज में. आभासी से वास्तविकता कि और चलो जवानो.
                                                                  सूर्यभान चौधरी

Saturday, May 14, 2011

जबरिया लिखौ या खबरिया लिखौ कौनो बात नहीं .पर जबरिया पढाओ जबरिया कराओ जबरिया हँसाओ. जे कौनो बात है?

वर्तमान युग जबरदस्ती का युग है. पहले के समय में मान मनुहार से लोग काम चला लेते थे. मतलब की मान मनौव्वल से हर काम ठीक ठाक तरीके से निपट जाता था.अब मान तो रहा नही मनौव्वल भी धीरे से  सरक  लिया. सो भाई लोगो ने जबरदस्ती का फंडा बना डाला. हमारे सुकुल जी ने तो ऐलान ही कर दिया था की हम तो जबरिया लिखबै. जबरिया लिखौ या खबरिया लिखौ कौनो बात नहीं .पर जबरिया पढाओ जबरिया कराओ जबरिया हँसाओ. जे कौनो बात है? लाफ्टर चैनल  वाले जबरिया हसाने के चक्कर में जार जार रुला रहे है. हिया बलाग जगत में एक्कै पोस्ट ससुरी दस जगह पडी मिलती है.
अब पढे के पडी. बलाग पे डाला, फेस्बुकियाया, आर्कुटई  चिरकुटई भी कर दी. फिरू मन नही माना. 
माने कईसे चंचल जो घोषित हुआ है. प्रवृत्ति से विवश. 
भला हो हमारीवाणी का चिरकुट टाईप के लोगन से मुक्ति दिलाई दीस.   काल ब्लागर बाबा कोहा गए की लिख लिख के बेडा गर्क किये हमार और पोस्ट दिख रही फेसबुक पर. ई बड़ा जुलुम हवे. अरे स्वनाम धन्य महाप्रभुओं 
एक पोस्ट ही लिखो पर ठीक ठाक लिखो. ऐसा लिखो की लोग ढूंढें की पोस्ट कहा लिखी है,तो कोई बात है. पता चला की एक कंकड़ उठा के मारा ससुर जेहर गिरा वही पोस्ट बिराजमान है.

                                                                      ... सूर्यभान चौधरी 
                         

Tuesday, May 10, 2011

ब्लागिंग से घटती कार्यक्षमता और बढ़ता मानसिक तनाव(ब्लोमेयोपिया)

ब्लागिंग से सम्बंधित एक सर्वे में यह निष्कर्ष सम्मने आया है ....

१. कार्यस्थल पर व्यक्ति के पास उपलब्ध नेट का अधिकतम इस्तेमाल ब्लागिंग में किया जाता है फलतः व्यक्ति का सारा ध्यान कार्य की और न होकर ब्लाग और उस पर आयी टिप्पणियों की तरफ होता है.
२. २४ घंटे में व्यक्ति १८ घंटे ब्लाग और उससे जुड़े मुद्दों के बारे में सोचता रहता है
३. ब्लागिंग के चलते गुटबाजी होने से व्यक्ति के मन में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है.
४. व्यक्ति के आँखों पर लगे चश्मे का नंबर बढ़ता जा रहा है.
५. ब्लागिंग में डूबे रहने की वजह से घरेलू और सामाजिक विवाद बढ़ रहे है.
६. ईट  ब्लागिंग  ड्रिंक ब्लागिंग की वजह से एक नया रोग सामने आ रहा है जिसे वैज्ञानिको ने "ब्लोमेयोपिया" का नाम दिया है.
७.ब्लोमेयोपिया के वायरस फैलाने और लोगो को रोगग्रस्त बनाने का कार्य सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है इसमें उन ब्लागरो को लगाया गया है जो अमेरिका और अरब देशो से चंदा प्राप्त करते है.

अंत में सनद रहे की ब्लागिंग परमाणु ऊर्जा की तरह है इसका सदुपयोग मानवता को विकास के चरम तक पंहुचा सकता है लेकिन यदि इसका दुरुपयोग करके ब्लोमेयोपिया को फैलाया गया तो यह आभासी के साथ वास्तविक दुनिया को नष्ट कर डालेगा.  

Tuesday, May 3, 2011

खानदानी शफाखाना: शौचक्रिया करने और कराने में माहिर, डॉ जानवर शौचाल


मेरी यह पोस्ट उन तमाम लोगो के लिए है जिनको बात बात में कब्ज की शिकायत हो जाती है (डाक्टरों का मानना है की कब्ज तनाव की वजह से भी होता है ) अब ब्लाहिंग करना और तनाव का होना एक दुसरे से सम्बंधित है. पोस्ट डाल दी लेकिन एकु कमेंटवा नाही दिख रहा.  नतीजा तनाव. लोग मेरी पोस्ट को पढ़ नही रहे. नतीजा तनाव. रात में दो बजे उठकर देखा की सूर्यभान ने पोस्ट लिख दी. तनाव हुई गवा.  लोग मेरी इज्जत नही कर रहे सम्मान नही कर रहे बड़ा ब्लॉगर नही मान रहे. फिर तनाव अब क्या होगा? होगा क्या कब्ज हो जाएगा और क्या? तो साहिबान ऐसे लोगो के लिए एक शफाखाना खुल गया है. इस शफेखाने में जाने के बाद आपकी कब्जियत  दूर की जायेगी. गारटेड इलाज.  चैलेन्ज . गलत साबित करने वाले को एक लाख रूपये का नकद ईनाम. इस पोस्ट की कटिंग लाने वाले को ९०० रूपये की छूट दी जायेगी. लेकिन सावधान नक्कालों से इस नाम से मिलते जुलते लोगो के यहाँ जाकर मरीजों ने शिकायत की है. डॉ जानवर शौचाल खानदानी एक मात्र असली सबसे बड़े वाले डाक्टर साहब है  शौचक्रिया  में होनोलूलू रिटर्न . तो आज ही अपनी बुकिंग कराइए.

दिल्ली में ब्लागिंग पर एक कार्यक्रम क्या हुआ लगा तमाम नालायक लोग पो पो करने लगे

दिल्ली में ब्लागिंग पर एक कार्यक्रम क्या हुआ  लगा  तमाम नालायक लोग पो पो करने लगे  हिंदी
चिट्ठाकारिता करना ठग्गू के लड्डू जैसा हो गया खाओ तो पछताओ न खाओ तो पछताओ. एक महाशय को गम हो गया बच्चों जैसे मचलते हुए हिंदी ब्लागिंग से कूच कर गए (वैसे संभावनाओं के द्वार खोल कर गए है जैसे किसी कोटेवाली का अड्डा हो  की  कभी भी आओ और मन करे तो  फूट लो ). अनवर जमाल को मजा आ गया  धडाधड  पोस्ट फेच्कुरिया कर (ऐसी पोस्टें दो चार लाइन में ही दम तोड़ जाती है) हाफ हाफ कर अपने को बड़ा ब्लागर मनवाने पर तुला है यहाँ तक कि वह टट्टी कैसे करता है इसको भी ब्लागिंग से जोड़ कर बता रहा
है.
 दूसरी और यह रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति को बढ़ाई देता है  हद हो गयी दोगलेपन की.
खत्री अलबेला छिला हुआ केला कि तरह या यूं कहे नंगलाल कि तरह पुंगी बजाने में रत है. अरे इन खब्तियों को कौन बताये की ये शुरू के छोटे छोटे कार्यक्रम आगे वृहद रूप धारण करेगी. कार्यक्रम में खामिया होगी पर उसमे सकारात्मकता देखने से ही सकारात्मक ब्लागिंग हो सकती है.
गिरते है मैदाने जंग में शाह सवार ही
वो तिल्फ़ क्या गिरेगे जो घुटनों पे चलते है.
                                                                         कार्य्रकम के आयोजको को बधाई
                                                                                  सूर्यभान चौधरी

Tuesday, March 29, 2011

चटक चिरैया














चटक चिरैया मटक मटक के
रोज भोरहरे आती
नन्हे पंखो को फटक फटक के
मीठे गीत सुनाती 
भोर की निंदिया हौले हौले  
दूर कही उड़ जाती
अधखुली फूली आखों से 
चटक चिरैया ढूंढी जाती
वो सपनो से मुझे जगा कर
अब न कही दिख पाती
इतनी दूर जब जाना ही था 
तो चटक चिरैया  क्यों आती

Thursday, March 10, 2011

और हम लेखक भये

कवि जी कवि वर भये
सबदन के वर भये
रस छंद  जोड़ी लिए
लरिकन  के आफत  भये

अब हम भी पाठको को
सताने वाली श्रेणी में शामिल हुए
पाठक से परिवर्तन हुआ
और हम लेखक  भये