Wednesday, May 18, 2011

टरई न टारे मटरुआ चाहे भुईं गड़हा होई जाय.

बस्ती जिले में एक कहावत है की टरई न टारे मटरुआ चाहे भुईं गड़हा होई जाय. कहावते सार्वभौमिक होती है. चलिए इस कहावत का मतलब बता दें. माने कि हम जहा खड़े है वही खड़े रहेगे चाहे जमीन में गड्ढा क्यों न हो जाय. किसी के हटाये नही हटेगे. ब्लागिस्तान में गड़हा खुद रहा है और मटरू भाई कह रहे है कि गडहे में कूदी जैबे मुला एक बार में दस ठू पोस्ट लिखी से बाजू न आयेगे. ये मटरू भाई का ही कमाल है कि दिना भर कम्पूतरवा के चोंच से चोंच भिडाये रहते है कि कब टिप्पणी रूपी चारा दिखे और गड़प कर जाय. एक मटरू ने बाकायदा टिप्पणी का बगीचा तक उगा डाला है. ऐसे ही सभी लोग बगीचा उगाते रहे तो ब्लॉग दुनिया हरी भरी हो जायेगी और ग्लोबल वार्मिंग ख़तम.
अरे मटरूओं जो हियाँ स्क्रीनिया माँ दिन भर घुसे रहते हो उसका अध हिसा समय अपने आस पास कि समस्यायों को देखने और विचार करने में लगाओ तो बात बने. तुम लोग आब्सर्व तो करते हो पर सारा आब्जर्वेशन पोस्ट की टिप्पणी में घुस जाता है. सो जरा बलाग, फेसबुक ऑरकुट चिरकुट से बहार आओ. देखो कि कित्ता बड़ा गड्ढा खुद गया है इस समाज में. आभासी से वास्तविकता कि और चलो जवानो.
                                                                  सूर्यभान चौधरी

2 comments:

  1. आपने अच्छा पहचाना मटरू को परंतु अगर वह हट जाएगा तो फिर मटरू थोड़े ही रहेगा ।

    आप कमाल लिखते हैं ।
    बगीचे वाली बात नए लोगों के लिए थोड़ा खोलकर लिख देते तो और भी झाँक लेते मटरू की बगिया ।

    सधन्यवाद !

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